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लड़कियां 💞

 #लडकियां ❤️ वो लड़कियाँ जो दूसरों से बहुत कम बोलती हैं पर उनका ध्यान चारो ओर रहता है और फिर घर पे हर तरह के इंसानों का (जिसे उसने कहीं भी देखा हो) नकल कर के एक्टिंग करती हैं,घर में सबसे ज्यादा चहकने वाली, घर में मम्मी के कामों में हाथ बंटाती हैं, टी वी सिरियल देखने वक्त अपने भाईयों से टीवी रिमोट के लिए लड़ती हैं, अपने सहेलियों को समझाती हैं कि लड़कों से दूर रहो, वे अक्सर पापा को दवाई समय से दे आती हैं, कोई लड़का बाहर उन्हें घूर दे तो घर आके कहती है.. "मन तो था कि बदतमीज का आंख ही फोड़ दूं" ।। उनके पास स्मार्टफोन तो होता है पर सिर्फ व्हाट्सएप पर कजिन भाई/बहनों से बातें करने भर, वो फेसबुक नहीं चलाती या फिर चलाती भी हैं जेनिफर विंगेट, दीपीका, कटरीना और आलिया वाली डीपी होती है।। और हाँ, उन्हें लड़का भी कोई पसंद आता है तो किसी धारावाहिक का हिरो जो एक आदर्श बेटा है, किसी बड़े कंपनी में नौकरी कर रहा होता है।। सुट सलवार और दुपट्टा में ही खूबसूरत दिखने वाली ऐसी लडकियां तमाम नुमाइशों का सर निचा कर देती हैं........  धनंजय 💞💞

" पुरुष का अस्तित्व"

  ☺️ पुरुष ☺ कुछ न कर पाए तो नाकारा है वो, फिर भी हर औरत का रहता सहारा है वो, बेख़ौफ़ हो कर भी खौफ़ में रहता है वो, अपने अंदर की वेदना किसी से नही कहता है वो, मुसीबतो से अकेले ही लड़ा करता है वो, घर होकर बेघर रहा करता है वो,  बिना गलती भी गलत समझा जाता है वो, समझदारी से समझता ही रह जाता है वो, कह सकता है फिर भी नही कह पाता है वो, खुद तप के भी सबको छाव देता जाता है वो, इंसान हो भी जानवर सा काम करता है वो,  लाख दर्द होने पर भी आह नही भरता है वो, अपने समाज परिवार देश का जिम्मेदार है वो, हर पल हर किसी के मदद को तैयार है वो, गलती औरत की होने पर भी होता गुनहगार है वो, ताकत होते भी रह जाता लाचार है वो, कही पिता कही बेटा कही भाई है वो, जरा सी गलती में समझा जाता कसाई है वो, इस सृष्टि की रचना का रचनाकार है वो, हर इक जीव का आधार है वो, इस बेगुनाह का कोई शुक्रगुज़ार नही होता, एक पुरुष के जीवन का कोई आधार नही होता|

प्रेमिका

काट के कलेजा दिखा देंगे ,   मम्मी से तुमको मिला देंगे,   ओए होए   शर्मा गयी का,   phone काट दी मम्मी आ गयी का,   ऐए मम्मी आ गयी का,   तुम मार खा गयी का,   बात मेरा सुनो तुम ध्यान लगा के,   बोल रहे है अनुमान लगा के,   लगता है रात तुम खाई हो मार,   सो जाओ ना झंडू बाम लगा के,     ऐए   अलार्म लगा के सोना ,मेरी सोना,   हम सपना में देखे तुम वही लड़की हो ,   शहर में तुम बहुत नयी लगती हो , जींस विनस का चकर हटाओ ,   सारी में तुम बहुत सही लगती हो,   सुन मेरा भाई हमको प्यार हो गया,   लड़की का चकर में मार हो गया,   बारिश में भीग के गए हम मिलने ,   अगला दिन हमको बुख़ार हो गया,   मेरी रानी.. मेरी टुमपा   तुम पायल पहनो या झुमका,   तुम जो भी पहनो बहुत सही लगेगा,   मेरा पास आओ ठंडा नहीं लगेगा,   सब सही लगेगा,   जब महफ़िल जमा देंगे समा में,   और हुका को फूंक देंगे हवा में,   हवा में  हम हुका को फूंक देंगे हवा में, हवा में  हम हुका को फूंक देंगे हवा में,                                                          Birthday में हम तुमको wish करेंगे, दूर मत जाना बहुत miss करेंगे, हमको corona का डर नहीं है,   C

दीपावली कि वो रात

 शाम के साथ ही मोहल्ले की एक छोटी सी दुकान पर बिजली बम, सुतली बम आलू और बउआ सांप के साथ-साथ, चट-पट वाली बंदूक आ जाती थी, और इसी के साथ शुरू होती थी, दिवाली की तैयारी। फिर करवा चौथ पर चाँद का निकलना हो या अहोई आठे पर तारों का दिखना। उसका पता मोहल्ले में पटाखों की आवाज से ही लग जाता था। कुछ पटाखे उनके घर के आस-पास जाके फोड़े जाते थे और उनके लिए भी ये सिग्नल का काम करता था। पहले लाइट ज्यादा तो जाती थी लेकिन शाम हमेशा रंगीन ही रहती थी, खासकर इस महीने। घरवालों के साथ दिवाली की तैयारियों में लगे रहना। खिड़कियों की सफाई और कुर्सियाँ धोने का काम खास तौर पर अपने ही खाते में आता था और हम भी लगे रहते थे। बात सारी ये थी कि यही एक टाइम होता था जब मोहल्ले वाले शिकायत की जगह तारीफ कर रहे होते थे कि देखो मिश्रा जी का लड़का कितना काम करता है। बाकी तो आतंकवादी से लेकर दैत्य-दानव वाली सारी उपाधियों से सम्मानित हो ही चुके थे। आज भी घर जाने पर कोशिश यही रहती है कि वो सब फिर से किया जाए लेकिन अब हो नहीं पाता। वो खुशी नहीं मिल पाती। सफाई करने का उतना समय नहीं होता, त्यौहार से एक-दो दिन पहले पहुँच कर ज्यादा स

पिता का प्यार

 लड़के पिता को गले नहीं लगाते। लड़के पिता के गालों को नहीं चूमते और न ही पिता की गोद में सर रख कर सुकून से सोते हैं, पिता और पुत्र का संबंध मर्यादित होता है.... बाहर रहने वाले लड़के अक्सर जब घर पर फोन करते हैं तो उनकी बात मां से होती है, पीछे से कुछ दबे-दबे शब्दों में पिताजी भी कुछ कहते हैं, सवाल करते हैं या सलाह तो देते ही हैं.... जब कुछ नहीं होता कहने को तो खांसने की हल्की सी आवाज उनकी मौजूदगी दर्ज करवाने के लिए काफ़ी होती है, पिता की शिथिल होती तबियत का हाल भी लड़के मां से पूछते हैं और दवाइयों की सलाह, परहेज इत्यादि बात भी लड़के मां के द्वारा ही पिता तक पहुंचाते हैं.... जैसे बचपन में कहीं चोट लगने पर मां के लिपट कर रोते थे वैसे ही युवावस्था में लगी ठोकरों के कारण अपने पिता से लिपट कर रोना चाहते हैं, अपनी और अपने पिता की चिंताएं आपस साझा करना चाहते हैं परन्तु ऐसा नहीं कर पाते.... पिता और पुत्र शुरुआत से ही एक दूरी में रहते हैं, दूरी अदब की, लिहाज की, संस्कार की या फिर जनरेशन गैप की, हर बेटे का मन करता है कि वो इन दूरियों को लांघता हुआ जाए और अपने पिता को गले लगा कर कहे कि "पापा,

दीवाली

 दीवाली की छुट्टियाँ अजीब होती हैं.. साथ के लौंडे नदारद होते हैं.. मिठाई बम और चरखी चोर कहीं जम्मू में ऑप्टिकल फाइबर केबल दबवा रहे होते हैं, एनसीआर के कंक्रीट जंगल के किसी कोने में किसी कॉमिक्स चोर के अप्रैसल का सीजन होता है जो अपनी होम लोन के ईएमआई बढ़ा के कटवाने के चक्कर में बॉस के सामने अपनी कटवा रहा होता है.. दीवाली की अगली सुबह झौआ भर डिफ्यूज पटाखा बीन के सस्ते दाम पे उधारी देने लौंडा किसी तोप का ट्रायल करा रहा होता है.. कुछ बचे खुचे लोकल बनिये टाइप के दोस्तों का बिज़नेस सीजन चल रहा होता है, और खानदानी जुए के चक्कर मे दीवाली के अगले डेढ़ दो दिन अंडरग्राउंड रहते हैं.. कुल मिला जुला के आपके पास भी जो वक्त होता है उसकी सर्वोत्तम उपादेयता झाड़ू-पोंछा, धूल-धक्कड़, कूड़ा-कबाड़ा, झाला मारना, झालर-बत्ती इत्यादि ही है..

एक स्त्री

 क्या आपने कभी स्त्रियों की मनोदशा समझने का प्रयास किया है उन स्त्रियों की व्यथा जिनका चंचल स्वभाव व अल्हड़ता उनके लिए जीवन में एक समय के बाद पग पग पर समस्याओं का कारण बन जाती है। यह स्त्रियां पुरुषों पर लिखा करती हैं उनके जीवन के दुखों पर प्रभावशाली लेखन अनेकों बार इनको अनर्गल आरोप सुनवा देता है पर यह तब भी पुरुषों के प्रति अपने निश्छल कर्तव्य का पालन करती रहती हैं। यह स्त्रियां पुरुषों के साथ सहज होती हैं पुरुषों के हास्य का जवाब उसी भाषा में देने के कारण हर पुरुष इनकी व्याख्या आदर्श नारी हर प्रकार के विचारों से समृद्ध नारी के रूप में करता है उसको ऐसी ही प्रेमिका चाहिए परन्तु सम्बंध में बंध जाने के बाद पता नहीं अनायास ही ऐसा क्या होता है की पुरुष को उस स्त्री की वह प्रकृति नयनों में पीड़ा देने लगती है। अब स्त्री है तो सम्बंध बचाए रखने के लिए अपमान भी सह लेगी कर लेगी आत्मसम्मान से समझौता किंतु मुद्दा यहीं नहीं थमता पुरुष अब उसको अपने हिसाब से ढालना चाहता है स्त्री की जिन विशेषताओं पर वह मोहित हुआ था अब वही उसकी सबसे बड़ी शत्रु बन जाती हैं। यह स्त्रियां जब प्रेम लिखती हैं तब हर दूसरा पुरु