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" पुरुष का अस्तित्व"

  ☺️ पुरुष ☺ कुछ न कर पाए तो नाकारा है वो, फिर भी हर औरत का रहता सहारा है वो, बेख़ौफ़ हो कर भी खौफ़ में रहता है वो, अपने अंदर की वेदना किसी से नही कहता है वो, मुसीबतो से अकेले ही लड़ा करता है वो, घर होकर बेघर रहा करता है वो,  बिना गलती भी गलत समझा जाता है वो, समझदारी से समझता ही रह जाता है वो, कह सकता है फिर भी नही कह पाता है वो, खुद तप के भी सबको छाव देता जाता है वो, इंसान हो भी जानवर सा काम करता है वो,  लाख दर्द होने पर भी आह नही भरता है वो, अपने समाज परिवार देश का जिम्मेदार है वो, हर पल हर किसी के मदद को तैयार है वो, गलती औरत की होने पर भी होता गुनहगार है वो, ताकत होते भी रह जाता लाचार है वो, कही पिता कही बेटा कही भाई है वो, जरा सी गलती में समझा जाता कसाई है वो, इस सृष्टि की रचना का रचनाकार है वो, हर इक जीव का आधार है वो, इस बेगुनाह का कोई शुक्रगुज़ार नही होता, एक पुरुष के जीवन का कोई आधार नही होता|