दीपावली कि वो रात
शाम के साथ ही मोहल्ले की एक छोटी सी दुकान पर बिजली बम, सुतली बम आलू और बउआ सांप के साथ-साथ, चट-पट वाली बंदूक आ जाती थी, और इसी के साथ शुरू होती थी, दिवाली की तैयारी। फिर करवा चौथ पर चाँद का निकलना हो या अहोई आठे पर तारों का दिखना। उसका पता मोहल्ले में पटाखों की आवाज से ही लग जाता था। कुछ पटाखे उनके घर के आस-पास जाके फोड़े जाते थे और उनके लिए भी ये सिग्नल का काम करता था। पहले लाइट ज्यादा तो जाती थी लेकिन शाम हमेशा रंगीन ही रहती थी, खासकर इस महीने। घरवालों के साथ दिवाली की तैयारियों में लगे रहना। खिड़कियों की सफाई और कुर्सियाँ धोने का काम खास तौर पर अपने ही खाते में आता था और हम भी लगे रहते थे। बात सारी ये थी कि यही एक टाइम होता था जब मोहल्ले वाले शिकायत की जगह तारीफ कर रहे होते थे कि देखो मिश्रा जी का लड़का कितना काम करता है। बाकी तो आतंकवादी से लेकर दैत्य-दानव वाली सारी उपाधियों से सम्मानित हो ही चुके थे। आज भी घर जाने पर कोशिश यही रहती है कि वो सब फिर से किया जाए लेकिन अब हो नहीं पाता। वो खुशी नहीं मिल पाती। सफाई करने का उतना समय नहीं होता, त्यौहार से एक-दो दिन पहले पहुँच कर ज्यादा स