दीवाली
दीवाली की छुट्टियाँ अजीब होती हैं.. साथ के लौंडे नदारद होते हैं.. मिठाई बम और चरखी चोर कहीं जम्मू में ऑप्टिकल फाइबर केबल दबवा रहे होते हैं, एनसीआर के कंक्रीट जंगल के किसी कोने में किसी कॉमिक्स चोर के अप्रैसल का सीजन होता है जो अपनी होम लोन के ईएमआई बढ़ा के कटवाने के चक्कर में बॉस के सामने अपनी कटवा रहा होता है.. दीवाली की अगली सुबह झौआ भर डिफ्यूज पटाखा बीन के सस्ते दाम पे उधारी देने लौंडा किसी तोप का ट्रायल करा रहा होता है.. कुछ बचे खुचे लोकल बनिये टाइप के दोस्तों का बिज़नेस सीजन चल रहा होता है, और खानदानी जुए के चक्कर मे दीवाली के अगले डेढ़ दो दिन अंडरग्राउंड रहते हैं.. कुल मिला जुला के आपके पास भी जो वक्त होता है उसकी सर्वोत्तम उपादेयता झाड़ू-पोंछा, धूल-धक्कड़, कूड़ा-कबाड़ा, झाला मारना, झालर-बत्ती इत्यादि ही है..
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